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 हिन्दी   कहानी :1     धरती                                                        

     

धरती या भूलोक या पृथ्वी हम मानवों का निवास है। हम सभी इसी पृथ्वी या धरती पर रहते हैं। इसी पर हम अन्न पैदा करते हैं। इसी के अन्न से हमारा पालन होता है। इसी से हम जल पाते हैं। जल से हमारा जीवन चलता है। आकाश और धरती के बीच हवा बहती है। इस हवा में हम साँस लेते हैं। साँस ही प्राण है। इसी से हम जीवित रहते हैं। हम इसी धरती से सोना, चाँदी, लोहा, ताम्बा और पेट्रोल प्राप्त करते हैं। सारा धन-वैभव इसी से मिलता है। इसलिये इसे वसुधा या वसुन्धरा कहते हैं। वसुधा का अर्थ हुआ-धन को धारण करने वाली। धरती का भी अर्थ धारण करने वाली ही है।


यह धरती सब कुछ धारण करती है। यही लक्ष्मी है। यही माता है। भू का अर्थ है-होना या उत्पन्न होना। मतलब हुआ कि भूमि उत्पन्न हुई है। लाखों वर्ष पहले उत्पन्न हुई है। विज्ञान बताता है कि धरती सूर्य से निकल कर बनी है। यह भी कहा जाता है कि पृथ्वी ब्रह्मांड के धूलि कणों से बनी है। यह भी बताया जाता है कि अथाह समुद्र से धरती निकल कर बनी है। प्रलयकाल में यह जल में डूब गयी थी। थोड़ा-सा पहाड़ी भाग बच गया था। हमारे एक पूर्वज मनु बच गये थे। धीरे-धीरे जल सूखा। पेड़-पौधे उगने लगे। मनु ने आग जलायी। मानव सभ्यता का श्रीगणेश किया। समाज चलाने की नियमावली रची। बहुत बाद में पृथु नामक राजा हुये। जनता ने उन्हें राजा बनाया था। वे बहुत योग्य राजा थे। इन्हीं के नाम पर हम धरती को पृथ्वी कहते हैं।


यह पृथ्वी गोल है। इसलिये भूगोल शब्द बना है। पर यह पूरी तरह गोल नहीं है। दोनों छोर याने ध्रुवों पर यह नारंगी की तरह कुछ चपटी है। पृथ्वी नारंगी की तरह ही गोल है, गेंद के समान नहीं। शायद लट्टू की तरह प्रतिदिन चक्कर काटने के कारण नारंगी के समान हो गयी है।


धरती सूर्य से निकलकर धीरे-धीरे ठंडी होती गयी है। ऊपरी सतह ठंडी होकर ठोस और कठोर बन गयी है। ऊपरी सतह के सिकुड़ने से कहीं-कहीं ऊँचे पहाड़ बन गये हैं। कहीं झीलें बन गयी हैं। कहीं सागर महासागर बन गये हैं। अभी भी भीतर का भाग गर्म है।


धरती स्थिर नहीं है। यह सदा अपनी धुरी या कील पर गतिशील रहती है। इसकी दो गतियाँ हैं। इसकी दैनिक गति के कारण रात-दिन होते हैं। अपनी धुरी पर यह लट्टू के समान पश्चिम से पूर्व की ओर २४ घण्टों में एक बार चक्कर काट लेती है। रात और दिन का यही कारण है। इसकी वार्षिक गति से मौसम बदलते हैं। यह सूर्य के चारों ओर एक निश्चित अंडाकार पथ पर ३६५ दिन ५ घण्टे ४८ मिनट १२ सेकेण्ड में अपना वार्षिक चक्र पूरा करती है। स्मरण रहे कि हमारी धरती से सूर्य की दूरी १५ करोड़ किलोमीटर है।


धरती के धरातल के दो भाग हैं- थल और जल। हम तो थल भाग पर रहते हैं। यह थल भाग पृथ्वी का २९ प्रतिशत है। तीन भाग में एक ही भाग थल है। शेष दो भाग में जल है याने ७१ प्रतिशत भाग में जल ही जल है जिसे हम महासागर कहते हैं। थल भाग को हम महाद्वीप या महादेश कहते हैं। ये हैं- एशिया, यूरोप, अफ्रिका, आस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका तथा दक्षिणी अमेरिका। एशिया महादेश में ही हमारा परत स्थित है। 

 हिन्दी कहानी : 2     पतन                      



 गंगा के किनारे बाँसघाट के पास गोलघर पर खड़े होकर पटना महानगर का पश्चिमी हिस्सा देखा जा सकता है। दो सौ वर्ष पहले गोलघर बना था। बौद्धस्तूप के समान गोलघर लगता है। भीतर अन्न का भंडार है। हम थोड़ी चक्करदार सीढ़ियों पर चढ़कर गोलघर पर पहुँच सकते हैं। उत्तर तरफ गंगा की धारा दिखायी पड़ेगी। पूर्व और दक्षिण की तरफ नगर के बाजार देख सकते हैं। पश्चिम-दक्षिण की तरफ सरकारी भवन दिखायी पड़ेंगे। सचिवालय की मीनार की झलक मिल सकती है। विद्यालय के बाल-किशोर बड़ी उमंग में गोलघर पर चढ़ते हैं। ऊपर पहुँचने में शायद ही कोई थके। महानगर की चोटी पर पहुँचकर अपनी धाक जमा देनी है जैसे एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचकर तेनसिंह ने झंडा फहरा दिया था।


गंगा और सोन नदियों के संगम पर बसा हुआ पटना भारत का बहुत पुराना प्रसिद्ध नगर रहा है। भगवान बुद्ध के समय में यह नगर बसा था। मगध के राजा अजातशत्रु ने वैशाली गणतंत्र से लोहा लेने के लिए राजगृह को छोड़कर पटना राजधानी बनायी। पहले इसे पाटलिग्राम कहा गया। और फिर इसे पाटलिपुत्र के नाम प्से पुकारा गया। यहाँ किला बनाकर अजातशत्रु ने वैशाली पर आक्रमण किया। कूटनीति और रणनीति से अच्छी-भली वैशाली को पराजित किया। इसके बाद ही पाटलिपुत्र का विकास होने लगा।


इतिहास बताता है कि महान राजनीतिज्ञ चाणक्य और वीरवर चन्द्रगुप्त पाटलिपुत्र के थे। चाणक्य की बुद्धि और चन्द्रगुप्त की वीरता से यूनानी पराजित हुये थे। भारत का पश्चिम भाग यूनानियों से स्वाधीन हुआ था। चन्द्रगुप्त और उसके पोते अशोक-दोनों भारत के प्रसिद्ध सम्म्राट हुये थे। पाटलिपुत्र में ही भारत की राजधानी थी। अशोक के समय के अवशेष कुम्हरार में मिलते हैं। कुम्हरार की खुदाई में प्राचीन पाटलिपुत्र के चिह्न हम देख सकते हैं। कहा जाता है कि अगमकुँआ अशोक के युग का है। काफी बड़ा और गहरा कुँआ है। कदमकुँआ भी उसी युग का अवशेष है। पूर्व द्वार और पश्चिम द्वार नामक मुहल्ले संभवतः प्राचीन या मध्यकालीन नगर के संकेतक हैं।


पटना सिटी से लेकर बाँकीपुर तक बसा हुआ पटना दानापुर तक फैलता जा रहा है। पूरब से पश्चिम तक प्रायः १४ कि.मी. तक बस चुका है। उत्तर में गंगा और दक्षिण में रेल की पटरियों तक बसा हुआ नगर नवीनतम बाईपास रोड (बाहरी सड़क) तक पहुँच चुका है। पश्चिम में राज्यपाल भवन, सचिवालय, विधानसभा भवन और शहीद स्मारक हैं। सन् १९४२ की अगस्त क्रान्ति में हमारे नौजवान अंग्रेजों की गोलियों से मारे गये थे। वे सचिवालय पर झण्डा फहराने जा रहे थे। बन्दूक की गोलियों से डर कर पीठ नहीं दिखायी। अपनी छाती पर जार को सहा। 'भारत माता की जय' का घोष किया। गाँधीजी का नाम लेकर धरती माँ की गोद में सो गये। स्वाधीनता के बाद उनके बलिदान का स्मारक बन गया है। सभी पटना जाने पर शहीद स्मारक के दर्शन करते हैं। कुछ ही दूर उत्तर-पूर्व की तरफ बिहार प्रदेश का संग्रहालय है जिसे म्यूजियम कहा जाता है। संग्रहालय में प्राचीन और मध्यकालीन जीवन की बची-खुची दुर्लभ वस्तुओं का संग्रह है। मौर्यकाल से लेकर सन् १८५७ के विद्रोह तक की वस्तुओं एवं मूर्त्तियों को देखकर हम प्रदेश और भारत के इतिहास की जानकारी पा सकते हैं। उधर राज्यपाल भवन से आगे संजय गांधी जैविक उद्यान और चिडियाघर भी बन चके हैं। अब हम तारामंडल को भी देख सकते हैं। बी. एन. कालेज और मगध महिला कालेज के मध्य में विशाल गाँधी मैदान है जिसे पहले लॉन कहा जाता था। यहाँ कुछ वर्ष पहले सरस्वती शिशु मंदिर के भैया और बहनों का विराट् पूर्वांचल शिशु संगम हुआ था। सत्र १९७४ में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनजागरण को आवाहन किया था। यहाँ १५ अगस्त और २६ जनवरी को भव्य समारोह में झंडा फहराया जाता है। हम प्रतिदिन सुबह में सैकडों तरुणों और प्रौढों को व्यायाम करते और टहलते देख सकते हैं। संध्या में यह मैदान खेल का मैदान बन जाता है। यह मैदान महानगर की शोभा है।


गंगा किनारे महेन्द्र घाट तो अशोक के पुत्र महेन्द्र का स्मारक है। महेन्द्र अपनी बहन संघमित्रा के साथ बौद्ध मत के प्रचार के लिए श्रीलंका गया था। सारा जीवन वहीं लगा दिया। कैसा तपस्वी था ! उसे याद रखना जरूरी है। महेन्द्रू घाट से ले कर गाँधी घाट महेन्द्र महल्ले तक गंगा तट पर महाविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय और बड़ा अस्पताल (चिकित्सालय) हैं। सारे प्रदेश के छात्र ऊँची शिक्षा पाने आते हैं। पटना मेडिकल कालेज हास्पिटल में लोग चिकित्सा के लिए दौड़ आते हैं। सड़क की दूसरी तरफ मुरादपुर का सुन्दर बाजार है। सब्जी बाग में श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर बिरला मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। दर्शनीय मंदिर है। उधर पटना जंक्शन के पास पुराना महावीर मंदिर गगनचुंबी बन चुका है। गंगा पर पटना से हाजीपुर तक विश्व का लम्बा पुल बना है। इसे महात्मा गाँधी सेतु कहते हैं।


पूर्व भाग में महानगर का पुराना पटना नगर (सिटी) है। इसे पटना नगर कह सकते हैं। व्यापार का बड़ा केन्द्र है। यहीं चौक से आगे गुरुगोविन्द सिंह जी का जन्म हुआ था। जन्मस्थान पर श्री हरि मन्दिर बना हुआ है। पिता श्री गुरुतेग बहादुर ने औरंगजेब के अत्याचार के खिलाफ हिन्दुत्व की रक्षा के लिए बलिदान दिया था। श्री गोविन्दराय ने रक्षा के लिए संघर्ष का वीर मार्ग अपनाया। अपने शिष्यों को सिंह बनाकर कृपाण धारण करने का आदेश दिया। श्री गोविन्द राय और उनके शिष्य सिंह कहलाने लगे। उन्होंने रक्त की अन्तिम बंद तक औरंगजेब से युद्ध किया। वे ब्रजभाषा हिंदी के प्रसिद्ध कवि भी थे। आज कुछ लोग बाहरी बहकावे में आकर

हिन्दी कविता : 3                                    



गंगा तट का दीपक झलमल सरयू तट का उत्सव कलकल यमुना जी पर बजी बाँसुरी इनके आगे शीश झुका लो ॥ १ ॥

दीपक दल की पूजा कर लो इनमें विक्रम, उनके गौरव इनमें चन्द्रगुप्त का वैभव शरद निशा मुस्काता कैरव इनके आगे शीश झुका लो ॥ २ ॥ दीपक दल की पूजा कर लो अंधकार में यह प्रकाश है नन्हें सूरज, वन्दन कर लो शिवा-प्रताप की समाधि है शीश झुका कर अर्चन कर लो दीपक दल की पूजा कर लो ॥ ३ ॥ कीतिराम की जय सुनाता सागर रावण हारा, कहता नागर राम राज्य की यज्ञ शिखा है नयी ज्योति, आँखों में भर लो दीपक दल की पूजा कर लो ॥ ४ ॥

 हिन्दी कविता:4 सूरदास की वाणी

मैया, कबहिं बढ़ेगी चोटी ?

किती बार मोहि दूध पियत भई, यह अजहूँ है छोटी।

तू जो कहति बल की बेनी ज्यौं वैहै लाँबी-मोटी ।

काढ़त-गुहत-न्हवावत जैहै नागिन-सी भुँइ लोटी।

काँचौ दूध पियावति पचि-पंचि देति न माखन-रोटी।

सूर स्याम चिरजीवौ दोउ भैया हरि हलधर की जोटी।

हिन्दी कहानी:5 जंगल के जीव 

गंडक नदी के किनारे आम के पेड़ में मधुमक्खियों का छत्ता लगा हुआ था। एक. दिन एक कबूतर पानी पीने के लिए नदी किनारे आया। दाना चुग कर आया था। गंडक में पानी पीने लगा। उसने देखा कि छत्तों से रानी मधुमक्खी जल की धारा में गिर गयी है। यह नदी में बह रही है। कबूतर ने रानी मधुमक्खी की छटपटाहट को देखा। उसका हृदय करुणा से भर उठा। वह व्याकुल हो गया। उसने चारों ओर दृष्टि डाली। एक सूखा पत्ता नजर आया। उसने कुछ सोचा। वह चोंच में पत्ता लेकर उड़ता हुआ रानी मधु-मक्खी के पास पहुँचा। पत्ते को गिरा दिया। धारा में बहती रानी मक्खी को पत्ते का सहारा मिला। वह पत्ते पर चढ़ गयी। उड़ते हुए कबूतर को खुशी हुई। उसे लगा कि अब मधुमक्खी की जान बच गयी। किसी को दुःख या संकट में सहायता करना हो धर्म है।

नाम, वीणा, स्वा,

अच्छा संगो

दो क्षण के बाद देखा कि पत्ता तो किनारे नहीं लग रहा है। मधुमक्खी भी उड़ नहीं पा रही है। वह चुपचाप पड़ी है। अभी संकट पूरे रूप में टला नहीं है। उसने फिर बुधा। और यह नीचे उतरा। उसने पने को किनारे की ओर करने की चेष्टा धीरे-धीरे पत्ता किनारे आलगा पते का बहना रुक गया। पर मधुमक्खी पड़ी तर तो सण प्रतीक्षा की। हवा लगने से पंख का पानी सूख गया। मधुमक्खी हिलने-डुलने लगी। कबूतर को संतोष हुआ। उसने देखा कि मधुमक्खी करते पर पहुंच गयी। रानी मधुमक्खी को पाकर मधुमक्खियाँ प्रसन्न हुई। प्रमत्र भाव से पास के पेड़ पर जाकर बैठ गया।

मे उनका स्वागत किया। एक दिन बहेलिया आया। उसने कबूतर के जोड़े को देख लिया। उसकी जीप से पानी टपकने लगा। पकड़ने के लिए जाल फैलाने लगा मधुमक्खियों फूलों का रस लेकर लौट रही थीं। उन्होंने बहेलिया को देखा। वे बरा उठीं। वे बर-बर काँपती हुई छते में पहुंची। रानी मधुमक्खी को एक ने कहा- 'बहेलिया तो कबूतर के जोड़े को पकड़ ले जायेगा। कबूतर ने रानी की जान बचायी है। हमें फं कुछ करना चाहिए।'

रानी ने कहा- 'हम प्राण देकर कबूतर की रक्षा करेंगे। हम कृतघ्न नहीं हैं।'

दूसरी मक्खी ने कहा- 'हाँ, हम तो फूलों के रस से मधु तैयार करती हैं। लोग मयु ले जाते हैं हमें क्या मिलता है? पर हम बिन्ता नहीं करती !'


गभी ने कबूतर को बहालया से रक्षा के लिए उपाय बताया। बहुत में मधुमक्खियों उड़ चलीं। वे बहेलिया पर टूट पड़ीं। बहेलिया का होश उड़ गया। वे उसके शरीर पर जहाँ-तहाँ काटकर मंडराने लगी। बहेलिया को नानी की याद आने लगी। यमदूत के समान मधुमक्खियाँ घेर कर चेतावनी दे रही थी। बहेलिया ने समझ लिया कि यहाँ दाल नहीं गलेगी। डंक से सारा शरीर खुजला रहा था। वह डर के मारे तो दो ग्यारह हो गया।

कबूतर ने देखा कि बहेलिया भाग रहा है। मधुमक्खियाँ पीछा कर रही हैं। उसका भय खत्म हुआ। उसने रानी मधुमक्खी के पास जाकर धन्यवाद दिया।

रानी ने कहा- 'धन्यवाद किसलिए, कबूतर भाई। हम तो वन-उपवन के जीव हैं। आपस में मिलकर रहेंगे तभी जी सकेंगे।' कबूतर ने उत्तर दिया- 'ठीक कहती हो रानी मक्खी । द्रया-धर्म का उपदेश देने वाला मानव दिन-रात हमारे शिकार के लिए

हिन्दी कविता: 4 पछि            
 


नीलगगन में पंछी उड़ते, पंख खोल कर उड़ते जाते। नीले नभ के आरपार वे, स्नेह-प्रेम के गीत सुनाते ॥ १ ॥

पूरब में लाली छा जाती, मन्द-मन्द किरणें मुस्कातीं।

नीड़-नीड़ पंछी जग जाते, हमें जगाते, गीत सुनाते ॥ २ ॥

अमराई की डाल-डाल पर, मंजर छायी पाँत-पाँत पर।

काली-काली कोयल गाये, वर वसंत का राग सुनाये ॥ ३ ॥

पर्वत पर बादल मडराता, गरज गरज कर हमें डराता। मधुवन में तो मोर सुहाते, पंख खोलकर नाच दिखाते ॥ ४ ॥





































































































































































































































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